कण कण में तेरा वास प्रभु,
जो करे दुखों का नाश प्रभु,
दुनिया भर की खुशियां,
मेरे पास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई
खाटू धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई,
कण कण में तेरा वास प्रभु।।
कोई नहीं दिख्यो अपणो जद,
तू ही नजर मनै आयो,
खाटू नगरी आ बैठयो,
जब मेरो जी घबरायो,
पैर धरयो खाटू में,
सांस मैं सांस आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
खाटू की माटी का हमने,
देखा अजब नजारा,
क्या निर्धन क्या सेठ सभी को,
इसने पार उतारा,
दुनिया सारी करके,
ये विश्वास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
रेत नहीं मामूली ये तो,
है संजीवन बूटी,
मौज करूं दिन सांवरा,
सोऊं तान के खूंटी,
होली और दीवाली,
बारहों मास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
तेरी इस पावन मिट्टी में,
मैं मिट्टी हो जाऊं,
सदा सदा के लिए तेरे,
इन चरणों में सो जाऊं,
‘नरसी’ के होंठो पे इतनी,
प्यास आ गई,
खाटू धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई।।
कण कण में तेरा वास प्रभु,
जो करे दुखों का नाश प्रभु,
दुनिया भर की खुशियां,
मेरे पास आ गई,
थारे धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई
खाटू धाम की माटी,
म्हारै रास आ गई,
कण कण में तेरा वास प्रभु।।
– लेखक एवं गायक –
श्री नरेश ” नरसी ” जी ( फतेहाबाद )
– भजन प्रेषक –
प्रदीप सिंघल (‘जीन्द’ वाले)