ना माँगू मैं हीरा मोती,
ना ही लाल फ़रारी,
खाटू में इक घर दे देना,
छोटा सा इक बारी,
तेरा हो जाऊँगा मैं,
यहीं बस जाऊँगा मैं।।
तर्ज – माई नि माई।
जब जी चाहे दर्शन करना,
नंगे पाँव मैं आऊँ,
घर से ताज़ा बना चूरमा,
तुझको भोग लगाउँ,
रह करके तेरे चरणों में,
चिंता मिट जाए सारी,
खाटू में इक घर दिलवा दे,
छोटा सा इक बारी,
तेरा हो जाऊँगा मैं,
यहीं बस जाऊँगा मैं।।
हर ग्यारस और फागुन महीना,
घर को ख़ूब सज़ाऊ,
फूल माला और इत्र की ख़ुशबू,
से घर को महकाऊँ,
ख़ुद की नज़र ही लग जाए ना,
लुन राई वारी,
खाटू में इक घर दिलवा दे,
छोटा सा इक बारी,
तेरा हो जाऊँगा मैं,
यहीं बस जाऊँगा मैं।।
घर की बगीची के फूलों से,
सुंदर हार बनाऊँ,
कई भांत के फूलों से,
तेरा सिंगार बनाऊँ,
कलकत्ता और दिल्ली के,
सिंगार पे पड़े जो भारी,
खाटू में इक घर दिलवा दे,
छोटा सा इक बारी,
तेरा हो जाऊँगा मैं,
यहीं बस जाऊँगा मैं।।
ना माँगू मैं हीरा मोती,
ना ही लाल फ़रारी,
खाटू में इक घर दे देना,
छोटा सा इक बारी,
तेरा हो जाऊँगा मैं,
यहीं बस जाऊँगा मैं।।
गायक – सतबीर धालीवाल।
9356661004