खाटू वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता,
लीले वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता,
जो कोई जैसी करनी करता,
वैसा ही फल पाता,
खाटु वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता।।
तर्ज – मेरे मालिक की दुकान में।
क्या साधू क्या संत गृहस्थी,
क्या राजा क्या रानी,
श्याम की पुस्तक में लिखी है,
सबकी कर्म कहानी,
लखदातारी अन्दर बैठा,
सबका हिसाब लगाता,
खाटु वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता।।
बड़े बड़े कानून श्याम के,
बड़ी बड़ी मर्यादा,
किसी को कौड़ी कम नहीं मिलता,
मिले ना पाई ज्यादा,
इसीलिए ये दुनिया,
हारे का साथी कहाता,
खाटु वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता।।
चले ना इसके आगे रिश्वत,
चले नहीं चालाकी,
इसकी लेन देन की बन्दे,
रीति बड़ी है सादी,
समझदार तो चुप है रहता,
मूरख शोर मचाता,
खाटु वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता।।
खाटू वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता,
लीले वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता,
जो कोई जैसी करनी करता,
वैसा ही फल पाता,
खाटु वाले के दरबार में,
सब लोगो का खाता।।
Singer – Sakshi Sahani