खो दिया हीरा रे,
प्राणी तूने बैकार मे,
खो दिया हीरा रे।।
तर्ज – झुमका गिरा रे।
भेजा था गुरू ने जगत मे,
देकर तुझको निशानी,
पर ओ मूरख बन्दे तू ने,
इसकी कदर न जानी,
निश्चय ही अब यमराजा की,
मार पड़ेगी खानी,
देखो यूँ ही बीत न जाए,
दो दिन की जिन्दगानी,
हाँ ये दो दिन की जिन्दगानी,
खो दिया हिरा रे,
प्राणी तूने बैकार मे,
खो दिया हीरा रे।।
शरण गुरू की आए तो,
सारे बँधन कट जाए,
कहना हे यह सँतो का फिर,
कोई नरक न जाए,
करले भजन ओ मनवा प्यारे,
भव सागर तर जाए,
ऐसा मौका जीवन मे फिर,
रोज रोज नही आए,
हाँ रोज रोज नही आए,
खो दिया हिरा रे,
प्राणी तूने बैकार मे,
खो दिया हीरा रे।।
नाम गुरू का नित तू ध्याना,
चरणो मे मनको लगाना,
गुरू कृपा से मिट जाएगा,
तेरा आना जाना,
जो सतगुरू की शरण मे आए,
जीवन सफल बनाए,
जो हर पल गुरू नाम को ध्यावे,
शरण गुरू की पाए,
हाँ शरण गुरू की पाए,
खो दिया हिरा रे,
प्राणी तूने बैकार मे,
खो दिया हीरा रे।।
खो दिया हीरा रे,
प्राणी तूने बैकार मे,
खो दिया हीरा रे।।
– भजन लेखक एवं प्रेषक –
श्री शिवनारायण वर्मा,
मोबा.न.8818932923
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