खुद से चल जाती नैया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी,
मेरे माझी बन जाओ,
मेरी नाव चला जाओ,
मेरे माझी बन जाओ,
मेरी नाव चला जाओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
तर्ज – चाहा है तुझको चाहूंगा।
सुख में भुलाया तो दुःख ने सताया,
मुसीबत में कोई भी काम ना आया,
मेरी बिगड़ी बना जाओ,
मेरी लाज बचा जाओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
खुद से ये नैया चला के मैं हारा,
आखिर में तुमको ही मैंने पुकारा,
आओ जल्दी आओ,
पतवार पकड़ जाओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
कोई अच्छा माझी जो नैया चलाता,
तुझको बुलाने का मौका ना आता,
ये अटक गई नैया,
आकर के चला जाओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
मेरा बस तो तुम पे ही चलता कन्हैया,
तेरे ही चलाए से चलती है नैया,
भाव पार लगा जाओ,
अर्जी ना ठुकराओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
कभी सोचता हूँ हमारा क्या होता,
अगर कान्हा तेरा सहारा ना होता,
कहे ‘पवन’ को समझाओ,
इतना तो बतलाओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
खुद से चल जाती नैया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी,
मेरे माझी बन जाओ,
मेरी नाव चला जाओ,
मेरे माझी बन जाओ,
मेरी नाव चला जाओ,
खुद से चल जाती नईया जो हमारी,
तो फिर ना होती दरकार तुम्हारी।।
स्वर – हरी शर्मा जी।