सांची केवुं सांच कर मोनो,
मूर्ख मोल ठगाया,
कबीर जी,
किण विध ब्रह्म जगाया,
किण विध ब्रह्म जगाया।।
कीये कवल सूं वाणी उपजी,
कीये कवल में ठहराया,
कीए कवल रा करता पियोना,
किए कवल दर्शाया,
कबीर जी,
किण विधि ब्रह्म जगाया।।
कीण पुरुष थोरी उत्पत किनी,
कीण पुरुष घट वासा,
किए पुरुष रा ध्यान धरत हो,
किण थोने शब्द सुनाया,
कबीर जी,
किण विधि ब्रह्म जगाया।।
इण काया में तीनो नारी,
किण घर गंगा नहाया,
किए महल में भया उजाला,
किण घर गेब गुराया,
कबीर जी,
किण विधि ब्रह्म जगाया।।
मोने गुरु मच्छेंद्र मिलाया,
भिन्न भिन्न कर समझाया,
कहे जती गोरख सुनो कबीर सा,
पुरुष कहां से आया,
कबीर जी,
किण विधि ब्रह्म जगाया।।
सांची केवुं सांच कर मोनो,
मूर्ख मोल ठगाया,
कबीर जी,
किण विध ब्रह्म जगाया,
किण विध ब्रह्म जगाया।।
गायक – लक्ष्मण तंवर।
प्रेषक – दिनेश पांचल बुड़ीवाड़ा।
8003827398