कितना प्यारा श्रृंगार सजाया,
दर्शन करते रहे,
जैसे धरती पे चांद है आया,
जी करे देखते रहे,
शीश मुकुट कानो में कुंडल,
हाथ मे घोटा सोहे,
रूप सुहाना बाबोसा का,
भक्तो का मन मोहे,
कितना प्यारा श्रंगार सजाया,
दर्शन करते रहे,
जैसे धरती पे चांद है आया,
जी करे देखते रहे।।
तर्ज – कितना प्यारा तुझे।
रंग बिरंगे फूलो से,
क्या गजब किया श्रंगार,
नजर हटे न एक पल भी,
ऐसा सजा सरकार,
सुंदर से नयना है,
मुख पे बरसे नूर,
चमक रहा ललाट से,
दिव्य तेज भरपूर,
लागे न्यारा छगनी दुलारा,
केशरिया बागा तन पे प्यारा,
लीले घोड़े की सवारी,
श्री बाबोसा को सोहे,
रूप सुहाना बाबोसा का,
भक्तो का मन मोहे,
कितना प्यारा श्रंगार सजाया,
दर्शन करते रहे,
जैसे धरती पे चांद है आया,
जी करे देखते रहे।।
जिसने भी देख लिया,
ये तेरा श्रंगार,
भूल न पाये वो कभी,
बाबा तेरा दरबार,
‘दिलबर’ तेरा द्वार मिला,
अब न कोई चाह,
जीवन मेरा तेरे चरणों मे,
मैं हूँ तेरी पनाह,
ये प्रियंका दर तेरे आये,
तेरी भक्ति में खो जाये,
छवि तुम्हारी दिल मे बसी है,
कैसे बताऊं तोहे,
रूप सुहाना बाबोसा का,
भक्तो का मन मोहे,
कितना प्यारा श्रंगार सजाया,
दर्शन करते रहे,
जैसे धरती पे चांद है आया,
जी करे देखते रहे।।
कितना प्यारा श्रृंगार सजाया,
दर्शन करते रहे,
जैसे धरती पे चांद है आया,
जी करे देखते रहे,
शीश मुकुट कानो में कुंडल,
हाथ मे घोटा सोहे,
रूप सुहाना बाबोसा का,
भक्तो का मन मोहे,
कितना प्यारा श्रंगार सजाया,
दर्शन करते रहे,
जैसे धरती पे चांद है आया,
जी करे देखते रहे।।
गायिका – प्रियंका जैन गुड़गांव।
लेखक – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
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