कोई बंशी वाला आया,
आज मेरे गाँव में,
मटकी फोड़े माखन खाए,
वो गोकुल गाँव में,
कोईं बंशी वाला आया,
आज मेरे गाँव में।।
तर्ज – कोई परदेसी आया आज मेरे गाँव में।
कोई बंशी वाला आया,
आज मेरे गाँव में,
देखो वो बैठा है,
कदम्ब की छाव में,
श्याम सुन्दर जो आए,
आज मेरे गाँव में।।
तू तो है वृषभानु दुलारी,
मैं तो हूँ नन्द बाबा का छेला,
मेरे मन का मीत है पागल,
जैसे नहले पे देहला,
छम छम पायल बाजे,
आज मेरे पाँव में,
कोई बँसी वाला आया,
आज मेरे गाँव में।।
वृंदावन की मैं हूँ गुजरिया,
वो गोकुल का ग्वाला,
वन में जाकर धेनु चराये,
लगता है अलबेला,
मुरली बजाते माखन खाते,
कदम्ब की छाव में,
श्याम सुन्दर जो आए,
आज मेरे गाँव में।।
वृन्दावन की कुञ्ज गलिन में,
कान्हा खेले होली,
गोपियों को वो खूब सताते,
ले ग्वालो की टोली,
रास रचाये मुरली बजाये,
पूनम की रात में,
श्याम सुन्दर जो आए,
आज मेरे गाँव में।।
कोईं बंशी वाला आया,
आज मेरे गाँव में,
देखो वो बैठा है,
कदम्ब की छाव में,
कोई बँसी वाला आया,
आज मेरे गाँव में।।