कृपासिंधु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा,
जरा सतनाम कानो में,
सुना दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
तर्ज – मुझे तेरी मोहब्बत का।
दया करने को जीवों पर,
जो तुम दुनिया में आए हो,
मेरी भी तरफ एक दृष्टि,
झुका दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
सकल जग में पतित पावन,
तुम्हारा नाम जाहिर है,
अगर मुझ एक पापी को भी,
तारोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
अखंडित ज्ञान की धरा,
बरसा के परम सुखदाई,
प्रबल त्रयताप की अग्नि,
बुझा दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
परम सिंद्धांत वेदो का,
लखा के आत्मा मुझको,
मेरे दिल से अविद्या को,
हटा दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
कई मुद्दत से गोते खा,
रहा हूँगा बिचारा मैं,
सहारा दे के चरणों का,
बचा दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
पड़ी है आज अब मेरी,
प्रभु भव धार में नैया,
खिवैया बन किनारे पर,
लगा दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
अरज ‘धर्मदास’ प्रभुजी,
फकत चरणों में ये है की,
जनम और मरण के दुःख से,
छुड़ा दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।
कृपासिंधु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा,
जरा सतनाम कानो में,
सुना दोगे तो क्या होगा,
कृपासिन्धु मुझे अपना,
बना लोगे तो क्या होगा।।