कुकड़ कू कुकड कू,
बोल रहो मुर्गा।
दोहा – जीवन तपती धूप है,
तू शीतल जल धार,
थपकी लोरी में छुपा है,
माँ का सारा प्यार।
कुकड़ कू कुकड कू,
बोल रहो मुर्गा,
हो गवो सबेरा,
अब जाग माई दुर्गा।।
मुर्गा की बांग सुन,
उठ गई चिडैया,
चहचहा के हमसे,
ओ कह रही चिड़ैया,
हम तो उठ गए है,
तुम भी उठो माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा,
अब जाग माई दुर्गा।।
ब्रह्म मुहरत की,
शुभ घड़ी है प्यारी,
पूजा की थाल लिए,
आया है पुजारी,
ब्रह्म घड़ी चुके ना,
सुनो माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा,
अब जाग माई दुर्गा।।
जल धार में हम तो,
कब से है ठाडे,
भोर हो गई पंडा,
खोल दे किवाड़े,
दास सजन जगाता है,
सुनो माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा,
अब जाग माई दुर्गा।।
आरती करे तोरी,
हम यहां सकारे,
ढोल शंख लेके हम,
आए तेरे द्वारे,
शंख ध्वनि सुनके,
अब जाग माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा,
अब जाग माई दुर्गा।।
कुकड़कू कुकडकू,
बोल रहो मुर्गा,
हो गवो सबेरा,
अब जाग माई दुर्गा।।
गायक – रामसेवक श्रीवास्तव।
प्रेषक – डॉ. सजन सोलंकी।
9111337188