लाडली जू तुमसे,
मिलने को तरसती हूँ,
क्या बताऊं,
क्या छुपाने को मैं हंसती हूँ।।
तर्ज – तेरी उम्मीद तेरा।
बैरी दुनिया बड़ा सताती है,
लाख रोऊं ना बाज आती है,
सच बोलूं तो रूठ जाती है,
अब इशारे करें यह लाख,
ना मैं फसती हूँ,
क्या बताऊं,
क्या छुपाने को मैं हंसती हूँ।।
पाप सागर में गहरा गोता है,
ऐसा माया ने धर दबोचा है,
तेरी करुणा का ही भरोसा है,
वरना नाचीज नासमझ,
ना कोई हस्ती हूँ,
क्या बताऊं,
क्या छुपाने को मैं हंसती हूँ।।
रोज खुद को ही छल रही हूं मैं,
किन हालातों में चल रही हूं मैं,
कैसे कह दूं कि जल रही हूं मैं,
कौन समझे मेरी पीड़ा,
क्यों बरसती हूं,
क्या बताऊं,
क्या छुपाने को मैं हंसती हूँ।।
‘हरिदासी’ तो एक खिलौना है,
काम अश्को को ही पिरोना है,
थक गई हूँ रज में सोना है,
अब फैला लो अपना आँचल,
आके बसती हूँ,
क्या बताऊं,
क्या छुपाने को मैं हंसती हूँ।।
लाडली जू तुमसे,
मिलने को तरसती हूँ,
क्या बताऊं,
क्या छुपाने को मैं हंसती हूँ।।
स्वर – साध्वी पूर्णिमा दीदी जी।