लाख मनाऊं फिर भी ना माने रे,
दोहा – मन लोभी मन लालची,
मन चंचल मन चोर,
मन के मते न चालिए,
मन पल पल में कहीं और।
मन के मारे वन गये,
वन तजि बस्ती माहि,
कहे कबीर क्या कीजिये,
यह मन ठहरे नाहि।
लाख मनाऊं फिर भी ना माने रे,
मन मोरा भागा जाए जाए रे।।
दंभ द्वेष का चोला पहना,
चंचलता है इसका गहना,
कैसे प्रभु का ध्यान लगाऊं रे,
कैसे प्रभु का ध्यान लगाऊं,
मन मोरा भागा जाए रे।bd।
लिप्त तृप्त है भोग व्यसन में,
मस्त मगन है अपनी धुन में,
किस विधि योग का पाठ पढ़ाऊं रे,
किस विधि योग का पाठ पढ़ाऊं,
मन मोरा भागा जाए रे।।
पुलकित है जब सुख पाता है,
सहत दुसह दुःख घबराता है,
किस सम भाव का गीत सुनाऊं रे,
किस सम भाव का गीत सुनाऊं,
मन मोरा भागा जाए रे।bd।
लाख मनाऊ फिर भी ना माने रे,
मन मोरा भागा जाए जाए रे।।
गायक – व्यासजी मौर्य।
प्रेषक – डॉ सजन सोलंकी।
9111337188