लेके फिर अवतार कन्हैया,
श्लोक – यदा यदा हि धर्मस्य,
ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानमधर्मस्य,
तदात्मानं सृजाम्यहम्।
परित्राणाय साधूनां,
विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्मसंस्थापनाथाय,
सम्भवामि युगे युगे।
लेके फिर अवतार कन्हैया,
कलयुग में आ जाओ,
पाप से धरती हो गई विचलित,
धरा का बोझ मिटाओ।।
झूठ कपट ने पग पग पर है,
डाला अपना डेरा,
लालच लोभ ने मचा दिया है,
दुनिया में अँधेरा,
ज्ञान की फिर से ज्योत जलाओ,
अंधकार दुनिया से मिटाओ,
हे परमेश्वर हे सर्वेश्वर,
गीता फिर से सुनाओ,
पाप से धरती हो गई विचलित,
धरा का बोझ मिटाओ।।
जब जब धरती रोई तड़प कर,
तुम तो रुक ना पाए,
तुम त्रेता में तुम द्वापर में,
हर युग में तुम आए,
अभिमानी रावण को मारा,
कंस को था तूने संहारा,
भक्तों की खातिर तुम ही,
पर्वत को नख पे उठाओ,
पाप से धरती हो गई विचलित,
धरा का बोझ मिटाओ।।
ना जाने कोई दया धरम,
यहाँ ना जाने कोई श्रद्धा,
अपने स्वार्थ की खातिर देखो,
सच पे दाल दे पर्दा,
लेके सुदर्शन फिर तुम आओ,
सत्य का रस्ता तुम दिखलाओ,
‘नीलकांत’ तेरा हार ना जाए,
उसको विजय दिलाओ,
पाप से धरती हो गई विचलित,
धरा का बोझ मिटाओ।।
लेके फिर अवतार कन्हैंया,
कलयुग में आ जाओ,
पाप से धरती हो गई विचलित,
धरा का बोझ मिटाओ।।
Singer: Vijay Joshi, Neelkant Modi