मदवो घूम रयो हाथी रे,
दोहा – कबीर कमाई आपरी,
कभी यन निर्फल जाय,
सौ कोसो पीछे धरे,
मिले अगाऊ आय।
मदवो घूम रयो हाथी रे,
मधवो घूम रयो हाथी,
अमर पट्टो म्हारे सतगुरु दीनो,
चाकरी साँची।।
सतगुरु आँच दीनी म्हारे तन में,
विरह भट्टी जागी,
सूरत कलाली फेरे प्यालों,
पियो नी सेण साथी।।
पीवत प्याला जेज न लागी,
भभक तार लागी,
सोहंग तार लगी घट भीतर,
सुरता रही माती।।
नशा किया तब बकने लागो,
अणभय री भाखी,
होय मतवालों जूझू रण में,
छोड़ू नहीं बाकी।।
उल्टी राह चले सन्त शूरा,
चढ़े बंक घाटी,
निशिदिन गोला चले ज्ञान रा,
काळ भाज नाटी।।
धिनसुखराम मिल्या गुरु पूरा,
दीनी सेन साँची,
ईश्वर नशों भारी कबहुँ न उतरे,
रेवे दिन राती।।
मधवो घूम रयो हाथी,
अमर पट्टो म्हारे सतगुरु दीनो,
चाकरी साँची।।
गायक – महेंद्र जी राणासर।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052