मैं जो जी रहा हूँ बाबा,
तेरी रहमतों का साया।
दोहा – अगर बाबा तेरा सहारा ना होता,
तो सुंदर संसार हमारा ना होता,
तूफानों की तबाही में गुम हो जाते,
अगर सर पर हाथ बाबा तुम्हारा ना होता।
मैं जो जी रहा हूँ बाबा,
तेरी रहमतों का साया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
दुनिया के झूठे वादे,
दुनिया की झूठी कसमें,
माया में फंसाती ,
दुनिया की झूठी रस्मे,
अब सांच और झूठ में,
यह झूठ आगे आया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
क्यों बनाई हंसी दुनिया,
जिसमें ना कोई अपना,
दिखते हैं सभी अपने,
गर कोई नहीं अपना,
दुनिया बड़ी फरेबी,
अब जाकर समझ में आया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
कहीं देता बादशाह को,
भर भर के तू खजाने,
कोई रो रहा सड़क पर,
खाने को नहीं दाने,
तेरा हिसाब बाबा,
मुझको समझ ना आया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
तू हजार दे या लाखों,
नहीं लालसा अब कुछ भी,
चरणों की सेवा दे दे,
बस इच्छा बाबा इतनी,
तेरी ही दया से फैली,
तेरे जगत में माया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
भक्तों को मेरे बाबा,
अब और ना सताओ,
ले लो शरण में अपनी,
ललित सुमित को ना विसराओ,
सब हार के मेरे बाबा,
तेरे दर पर सर झुकाया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
मै जो जी रहा हूँ बाबा,
तेरी रहमतों का साया,
दर-दर भटक रहा था,
अब तेरी शरण हूँ आया।।
Singer / Upload – Pandit Lalit Sumit Maharaj
9165641301