मैं तो सदा तेरी भक्ति करूँ,
निशदिन तुम्हारी पूजा करूँ।।
गुरु देवा मेरे सतगुरु देवा,
मेरे साईं मेरे दाता मेरे बापू।।
गुरु और शिष्य का नाता है पावन,
गंगा जल के जैसा,
रिश्ते नाते बहुत है जग में,
कोई ना रिश्ता ऐसा,
कभी ना विचलित हो यह श्रद्धा,
जो गुरु बोले वो मैं करूं,
मै तो सदा तेरी भक्ति करूं।।
दरस गुरु के वचन गुरु के,
सच्चा धन है चरण गुरु के,
लग जाए बस प्रीत इन्हीं से,
हो जाऊं अर्पण मैं इनके,
इनसे ही सारी खुशियां है,
प्रेम इन्हीं का पाता रहूं,
मै तो सदा तेरी भक्ति करूं।।
सारे तीरथ धाम आपके चरणों में,
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में,
सद्गुरु जिनका नाम है घट के भीतर धाम,
ऐसे दीनदयाल को बारंबार प्रणाम।।
कैसे करूं मैं वंदना स्वर है ना राग,
आज परीक्षा है मेरी लाज रखो गुरु राज,
जन्म के दाता मात-पिता है,
आप करम के दाता,
आप मिलाते हो ईश्वर से,
आप ही भाग्य विधाता।।
रोगी तन को दुखिया मन को,
मिला है आराम आपके चरणों में,
हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।।
मैं तो सदा तेरी भक्ति करूँ,
निशदिन तुम्हारी पूजा करूँ।।
गुरु देवा मेरे सतगुरु देवा,
मेरे साईं मेरे दाता मेरे बापू।।
प्रेषक – डॉ सजन सोलंकी।
9111337188