मैया थारो रूप मन भायो,
जियो हरषायो,
कुण म्हारी मैया ने सजायो,
बनड़ी सी लागे म्हारी माँ,
सोणी सोणी लागे म्हारी माँ।।
तर्ज – पग पग दीप जलाएं।
सिंदूरी थारो रूप चमके,
कुण्डल काना माहि धमके,
चूड़ा और चुड़ला हाथा में खनके,
सोणो सोणो तिलक लगायो,
और सूरमो घलायो,
कुण म्हारी मैया ने सजायो,
बनड़ी सी लागे म्हारी माँ,
सोणी सोणी लागे म्हारी माँ।।
खूब खिल्यो है चुनड़ी को रंग,
मोर मोरिया तारा है संग,
देखे है जो भी रह जावे वो तो दंग,
मोटा मोटा गजरा पहरायो,
छतर लटकायो,
कुण म्हारी मैया ने सजायो,
बनड़ी सी लागे म्हारी माँ,
सोणी सोणी लागे म्हारी माँ।।
रजत जड़ित माँ थारो दरबार,
अद्भुत है सज्यो शृंगार,
झुंझनू में गूंजे माँ थारी जय जयकार,
‘बिन्नू’ जो भी दर्शन पायो,
की दुखड़ो भुलायो,
कुण म्हारी मैया ने सजायो,
बनड़ी सी लागे म्हारी माँ,
सोणी सोणी लागे म्हारी माँ।।
मैया थारो रूप मन भायो,
जियो हरषायो,
कुण म्हारी मैया ने सजायो,
बनड़ी सी लागे म्हारी माँ,
सोणी सोणी लागे म्हारी माँ।।
स्वर – सौरभ मधुकर।