मन कहे रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं,
अरे मन कहे झुक जा रे झुक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
तर्ज – दिल कहे रुक जा रे रुक जा।
यहाँ हिमालय जैसा पर्वत,
शंकर का कैलाश,
बहे जहाँ गंग की धारा,
मथुरा गोकुल श्री कृष्ण का,
हुआ यहाँ अवतार,
यहाँ जमुना का किनारा,
हरिद्वार सा कहा वन घना घना,
मन कहें रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
हुए यहाँ श्री रामजी जैसे,
सतवादी अवतार,
भीलनी जिन्होंने तारी,
सीता सावित्री दमयन्ती ने,
पाया यह सम्मान,
पद्मिनी जैसी नारी,
यहाँ रहती थी सती हर गली गली,
पूजन योग्य है यहाँ हर कली कली,
मन कहें रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
बडे सुहाने पर्वत है,
शोभा पाता दरबार,
बैठी जहाँ दुर्गा रानी,
चार धाम चौरासी अड्डे,
देवीयों की ललकार,
जैसे झांसी की रानी,
वीर न मौत से डरे मन खिला खिला,
हस हस फांसी चढे सर मिला मिला,
मन कहें रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
महाराणा प्रताप शिवाजी,
ने दिखलाई शान,
युद्ध से नाता जोडा,
गुरू गोविन्द सिंह ओर उनके,
बच्चो ने सीना तान,
मान दुश्मन का तोडा,
यहाँ हुए है वीर कही बडे बडे,
आग मे तपे फकीर कही बडे बडे,
मन कहें रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
हुए विवेकानंद जी स्वामी,
भारत रत्न महान,
वाणी में ब्रम्हा बोले,
वीर भगत सिंह जैसा शूरा,
भारत माँ का लाल,
मातरम् वन्दे बोले,
वीर सावरकर जैसा यहाँ पूत हुआ,
चन्द्र शेखर आजाद सपूत हुआ,
मन कहें रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
मन कहे रूक जा रे रूक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं,
अरे मन कहे झुक जा रे झुक जा,
यह हसीन है जमीं,
भारत के जैसी माटी,
है कही भी नहीं।।
गायक – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
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