मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगरे सगरे काज,
विनती करत हूँ रखियो लाज,
मन तडपत हरि दरसन को आज।।
तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी,
हमरी ओर नज़र कब होगी,
सुन मोरे व्याकुल मन की बात,
मन तडपत हरि दरसन को आज।।
बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ,
दीजो दान हरि गुण गाऊँ,
सब गुणीजन पे तुम्हरा राज,
मन तडपत हरि दरसन को आज।।
मुरली मनोहर आस ना तोड़ो,
दुख भंजन मोरा साथ ना छोड़ो,
मोहे दरसन भिक्षा दे दो आज,
मन तडपत हरि दरसन को आज।।
मन तड़पत हरि दरसन को आज,
मोरे तुम बिन बिगरे सगरे काज,
विनती करत हूँ रखियो लाज,
मन तडपत हरि दरसन को आज।।
प्रेषक – ऋषि विजयवर्गीय।
7000073009