मना भाई धीरज क्यों नही धरे,
हरदम काल फिरे थारा सिर पे,
हरदम काल फिरे थारा सिर पे,
जल बिचे आड तरे,
मना भाई धीरज क्यो नही धरे।।
आ संसार माया की भूखी,
कर कर सोच मरे,
इण माया ने त्यागो परेरी,
इण माया ने त्यागो परेरी,
सहजां ही काम सरे,
मना भाई धीरज क्यो नही धरे।।
इण संसार में भोगी गणा रे,
भोगी भोग करे,
भोगी रोगी कुकर्मी कहिये,
भोगी रोगी कुकर्मी कहिये,
तीनों ही डूब मरे,
मना भाई धीरज क्यो नही धरे।।
सत री नाव समुद्रां में हाले,
धर्मी बैठ फरे,
धर्मी धर्मी पार लगेला,
धर्मी धर्मी पार लगेला,
पापी डूब मरे,
मना भाई धीरज क्यो नही धरे।।
दौला राम जी सतगुरु मिलया,
आदु धर्म सरे,
शम्भू नाथजी सैन बतावे,
शम्भू नाथजी सैन बतावे,
छोगा जी अरज करे,
मना भाई धीरज क्यो नही धरे।।
मना भाई धीरज क्यों नही धरे,
हरदम काल फिरे थारा सिर पे,
हरदम काल फिरे थारा सिर पे,
जल बिचे आड तरे,
मना भाई धीरज क्यो नही धरे।।
गायक – भेरु पुरी जी।
प्रेषक – उगम लाल प्रजापति।
अजीतपुरा 9785039535
https://youtu.be/4olSoLoAEVQ