मंदिर में बैठा वो,
सुनले मन की बात,
कभी कभी ऐसा होता है,
ना कोई अर्जी,
ना कोई मुलाकात,
कभी कभी ऐसा होता है,
मंदिर मे बैठा वो,
सुनले मन की बात,
कभी कभी ऐसा होता है।।
तर्ज – पर्वत के पीछे।
मात पिता के जैसे कान्हा,
रखे मेरा ख्याल,
जब भी घबराऊ लेता,
मुझको ये ही संभाल,
मुझे बचा लेता कष्टों से,
थाम के मेरा हाथ,
दिखता नहीं पर,
मिलता है साथ,
कभी कभी ऐसा होता है,
मंदिर मे बैठा वो,
सुनले मन की बात,
कभी कभी ऐसा होता है।।
ना पूजा की ना सेवा की,
फिर भी प्यार करें,
भला बुरा जैसा भी हूं,
मुझको स्वीकार करें,
एक भरोसे एक सहारे,
पर जो टिका रहे,
बिन मांगे पूरी होती,
मन की मुराद,
कभी कभी ऐसा होता है,
मंदिर मे बैठा वो,
सुनले मन की बात,
कभी कभी ऐसा होता है।।
मंदिर में बैठा वो,
सुनले मन की बात,
कभी कभी ऐसा होता है,
ना कोई अर्जी,
ना कोई मुलाकात,
कभी कभी ऐसा होता है,
मंदिर मे बैठा वो,
सुनले मन की बात,
कभी कभी ऐसा होता है।।
स्वर – पवन भाटिया जी।