मत बांधो गठरियां अपजस की,
अपजस की रे भाया कुजस की,
मत बाँधो गठरिया अपजस की।।
ओ संसार बादल वाली छाया,
करो रे कमाई भाया हरि रस की,
मत बाँधो गठरिया अपजस की।।
जोर जवानी थारी ढलक जावेला,
बाल अवस्था थारे दिन दस की,
मत बाँधो गठरिया अपजस की।।
धर्मराज जब लेखो मांगे,
खबर लेवेला थारे नस नस की,
मत बाँधो गठरिया अपजस की।।
कहत कबीर सुणो भाई साधों,
जब थारे बात नहीं रेवे बस की,
मत बाँधो गठरिया अपजस की।।
मत बांधो गठरियां अपजस की,
अपजस की रे भाया कुजस की,
मत बाँधो गठरिया अपजस की।।
स्वर – डॉ. श्री रामप्रसाद जी महाराज।
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