मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
इण क्या में घोर अन्धेरो,
पर घर दिवला काई जोवे,
मत ले रे जिवडा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
इण काया में खान हीरा री,
कर्म कांकरिया ने काई रोवे,
मत ले रे जिवडा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
इण काया मे बाग चंदन रो,
बीज बावलिया रो काई बोवे,
मत ले रे जिवडा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
इण काया में सागर भरियो,
कादा में कपड़ा काई धोवे,
मत ले रे जिवडा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
कहत कबीर राम ने भज ले,
अंत समय मे पड़ियो रोवे,
मत ले रे जिवडा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
मत ले रे जीवड़ा नींद हरामी,
नींद आलसी,
थोड़ा जीवणा रे खातिर,
काई सोवे।।
– गायक एवं प्रेषक –
श्यामनिवास जी।
9024989481