मटको गजब घड़ियों रे कुम्हार,
वणिमें राम समावे जी,
राम समावे जी,
वणिमें राम समावे जी।।
उण मटकी में भरियो पानी जो,
गंगा जल कहलाय,
देवी निर्मल नीरा अमृत पीदा,
देव अमर हो जाय।।
इस मटकी में लेकर पाणी,
प्यासी प्रजा ने पिलाय,
भई म्हारा प्रजा पालन कर इज्जत राखी,
प्रजापति कहलाये।।
इस मटकी में गोटे सदा शिव,
भांग धतुरा खास,
अन्नदाता हलाहल विष का पान किया ये,
बचा लिया विनाश।।
इस मटकी को लेकर लक्ष्मी,
धन-दौलत भरवायो,
माता मेल बिजोरो मटकी उपर,
कलशियों नाम पुजायो।।
सतगुरु किशन कहे ‘रतन’ तू,
मतकर बातां गेली,
बावला कलशियां में सब देव समावे,
जग में पुजे पेली।।
मटको गजब घड़ियों रे कुम्हार,
वणिमें राम समावे जी,
राम समावे जी,
वणिमें राम समावे जी।।
गायक व रचना – पंडित रतनलाल प्रजापति।
मो.- 7627022556