इंच्छा पोर धरी धन काया,
इंच्छा पोर धरी धन काया,
डरता ही नाम दिखाया ए हा,
सूतो जीव अचेत नींद में,
सूतो जीव अचेत नींद में,
पियु को आयो जगाया रे संतो,
मेरा भेद मे पाया हा,
मै हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
मैं हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
ना कोई मेरे छाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा।।
कारण काज तिरीयो इन जुग मे,
कारण काज तिरीयो इन जुग मे,
गुरुमुखी ग्यान सुनाया ए हा,
अरे भडक्या जीव भरमना उपजी,
भडक्या जीव भरमना उपजी,
ओयक शिश निवाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा,
मै हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
ना कोई मेरे छाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा।।
तपीयो जीव चरन रे माई,
तपीयो जीव चरन रे माई,
त्राटक डोर तोनाया ए हा,
आव गमन अलग कर दिनी,
आवा गमन अलग कर दिनी,
दूर कियो दुखदाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा,
मै हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
ना कोई मेरे छाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा।।
कर्म खाइ कोने कर दिना,
कर्म खाइ कोने कर दिना,
सत का वचन सुनाया ए हा,
चन्दन सा कहे तन डंका,
चन्दन सा कहे तन डंका,
अमरलोक पहुँचाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा,
मै हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
ना कोई मेरे छाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा।।
इच्छा पोर धरी धन काया,
डरता ही नाम दिखाया ए हा,
सूतो जीव अचेत नींद में,
सूतो जीव अचेत नींद में,
पियु को आयो जगाया रे संतो,
मेरा भेद मे पाया हा,
मै हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
मैं हूँ ब्रह्म अटल अविनाशी,
ना कोई मेरे छाया रे संतो,
मेरा भेद मैं पाया हा।।
गायक – प्रकाश माली जी।
प्रेषक – मनीष सीरवी
9640557818