मेरा सतगुरु हो दातार,
काट दो फंदा,
मुझको सुजे नाय,
जन्म का अँधा।।
मुल कमल के माय,
गुणेशा बंदा,
रिद्धि सिद्धि ढोले भाव,
होवे आनन्दा।।
ससी बाण के बीच,
खेल कर बंदा,
खट स्वासा माय,
हरी तो जिंदा।।
पिला रंग पछाण,
चार है झंड़ा,
चारुं की पांख पछाण,
गाजरी गंगा।।
वांका दर्शन पाए,
होवे अणंदा,
गावे गोरख नाथ,
रुप सोअंगा।।
मेरा सतगुरु हो दातार,
काट दो फंदा,
मुझको सुजे नाय,
जन्म का अँधा।।
गायक – प्रेम रावल जी सूराज।
प्रेषक – प्रहलाद नाथ बागजणा।
भीलवाड़ा राजस्थान।
9571438243