आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा,
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा,
मेरे बाबोसा आने वाले है,
कलियाँ ना बिछाना राहों में,
हम खुद को बिछाने वाले है,
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा।।
तर्ज – क्या तुम्हे पता है।
ये कितने दिनों के बाद है आई,
आज मिलन की बेला है,
कई दिन गुजारे है यादों में,
ये दर्द जुदाई का झेला है,
हो हो हो हो हो,
वो दर्श दिखाकर के बाबोसा,
अपना बनाने वाले है,
कलियाँ ना बिछाना राहों में,
हम खुद को बिछाने वाले है,
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा।।
बाबोसा कही हो ना जाये,
इस जग में मेरी हंसाई,
राह निहारे तेरी हम,
क्यों इतनी देर लगाई,
हो हो हो हो हो,
पलको के रस्ते हम ‘दिलबर’,
तुम्हे दिल में बसाने वाले है,
कलियाँ ना बिछाना राहों में,
हम खुद को बिछाने वाले है,
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा।।
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा,
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा,
मेरे बाबोसा आने वाले है,
कलियाँ ना बिछाना राहों में,
हम खुद को बिछाने वाले है,
आओ घर को सजा दे,
गुलशन सा।।
रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया दिलबर।
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