मेरे मन में बस गयो श्याम लला,
भाये कैसे कोई अब और भला।।
चाहे ज़माना अब कुछ भी कहे रे,
मैं श्याम की श्याम मेरे भये रे,
मेरी अखियन में बस गयो श्याम लला,
भाये कैसे कोई अब और भला।।
जबसे लड़े श्याम सूंदर से नैना,
तब से कही बेरी जिया लगे ना,
कालो जादू सो कर गयो श्याम लला,
भाये कैसे कोई अब और भला।।
सांवरी सुरतियाँ ने पागल कियो री,
मुरली निगोड़ी ने घायल कियो री,
अपने रंग में ही रंग गयो श्याम लला,
भाये कैसे कोई अब और भला।।
मेरे मन में बस गयो श्याम लला,
भाये कैसे कोई अब और भला।।
स्वर – देवी चित्रलेखा जी।