मेरे मन में भी राम,
मेरे तन में भी राम,
रोम रोम में समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
जैसे मुझमे है राम,
जैसे तुझमे है राम,
हम सबमे समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
जैसे गंगा में राम,
जैसे यमुना में राम,
सब नदियों में समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
जैसे चंदा में है राम,
जैसे सूरज में है राम,
तारों मंडल में समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
जैसे भीलनी के राम,
जैसे मीरा के श्याम,
नर नारी में समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
जैसे सीता के राम,
जैसे राधा के श्याम,
पत्ते पत्ते में समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
मेरे मन में भी राम,
मेरे तन में भी राम,
रोम रोम में समाया मेरा राम रे,
मेरी सांसो में राम ही राम रे।।
गायक – श्री सच्चिदानंद जी आचार्य।
प्रेषक – गोपाल सिंह राजपूत।
9166377972