मेरी लगी श्याम संग प्रीत,
ये दुनिया क्या जाने,
मुझे मिल गया मन का मीत,
ये दुनिया क्या जाने,
क्या जाने कोई क्या जाने,
क्या जाने कोई क्या जाने,
मेरी लगी श्याम संग प्रित,
ये दुनिया क्या जाने।।
छवि लखि मैंने श्याम की जब से,
भई बावरी मैं तो तब से,
बाँधी प्रेम की डोर मोहन से,
नाता तोड़ा मैंने जग से,
ये कैसी निगोड़ी प्रीत,
ये दुनिया क्या जाने,
मेरी लगी श्याम संग प्रित,
ये दुनिया क्या जाने।।
मोहन की सुन्दर सूरतिया,
मन में बस गई मोहनी मूरतिया,
जब से ओढ़ी श्याम चुनरिया,
लोग कहे मैं भई बावरियां,
मैंने छोड़ी जग की रीत,
ये दुनिया क्या जाने,
मेरी लगी श्याम संग प्रित,
ये दुनिया क्या जाने।।
हर दम अब तो रहूँ मस्तानी,
रूप राशि अंग अंग समानी,
हेरत हेरत रहूँ दीवानी,
मैं तो गाऊँ ख़ुशी के गीत,
ये दुनिया क्या जाने,
मेरी लगी श्याम संग प्रित,
ये दुनिया क्या जाने।।
मोहन ने ऐसी बंसी बजाई,
गोप गोपियाँ दौड़ी आई,
सब ने अपनी सुध बिसरायी,
लोक लाज कुछ काम न आई,
फिर बाज उठा संगीत,
ये दुनिया क्या जाने,
मेरी लगी श्याम संग प्रित,
ये दुनिया क्या जाने।।
मेरी लगी श्याम संग प्रीत,
ये दुनिया क्या जाने,
मुझे मिल गया मन का मीत,
ये दुनिया क्या जाने,
क्या जाने कोई क्या जाने,
क्या जाने कोई क्या जाने,
मेरी लगी श्याम संग प्रित,
ये दुनिया क्या जाने।।
स्वर – श्री विनोद अग्रवाल जी।
प्रेषक – आशुतोष त्रिवेदी
7869697758
बहुत सुन्दर
अति मधुर व कर्णप्रिय । फूहड़ संगीत से कोसों दूर । साधुवाद आपको । मैं विनम्र भाव से आपको प्रणाम करता हूँ।
बहुत ही सुन्दर भजन
Bahut achcha bhajan