मेरी मानो पिया,
उनकी दे दो सिया।
दोहा – करना है शुभ कर्म करो,
चोरी का करना ठीक नहीं,
हरना है तो अवगुण को हरो,
परनारी का हरना ठीक नहीं।
मेरी मानो पिया,
उनकी दे दो सिया,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया।।
(तर्ज – आज कल याद कुछ। (या)
एक तू जो मिला।)
जब से हर करके लाए,
सिया जानकी,
हानि होने लगी है,
तेरी शान की,
मति कौन हरी,
ऐसी कुमति भरी,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया।।
सारी लंका जली और,
जलती रही,
मैंने लाख कहीं पर,
इक ना सुनी,
मति कौन हरी,
ऐसी कुमति भरी,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया।।
मेरी मानों पिया,
उनकी दे दो सिया,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया,
बस इसी में भलाई,
तुम्हारी पिया।।
स्वर – हल्केराम जी कुशवाह।
प्रेषक – अर्जुन पाटीदार।
9109785210