म्हारा हरी निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
श्लोक – मीरा जनमी मेड़ते,
और परणा दी चित्तोड़,
हरी भजन प्रताप से,
भई सकल सृष्टि शिरमोड,
सकल सृष्टि शिरमोड,
जगत मे सारा जानी,
आगे भई अनेक बाया ने रानी ,
जाकी रीत सगराम कहे,
ठीक जगे है ठोढ़,
मीरा जनमी मेड़ते,
वा परणाई चित्तोड़।
म्हारा हरी निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
सावन आवन के गया जी,
कर गया कॉल अनेक,
गिनता गिनता घस गयी म्हारी,
लाल आँगलिया री रेख,
म्हारा हरि निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
सांवरा ने ढूंढन में गयी रे,
कर जोगन को वेश,
ढूंढत ढूंढत जुग भया जी,
आया धोला केश,
हरि निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
सब धरती कागज करू रे,
कलम करू बनराय,
सात समंद स्याही करू रे,
हरि गुण लिखियो नी जाय,
म्हारा हरी निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
सांवली सुरतिया माधुरी मूरतिया,
घूंघर वाला केश,
मीरा ने सांवरियो मिलग्यो,
धर नटवर को वेश,
म्हारा हरी निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
म्हारा हरी निर्मोही रे,
साँवरा जाय बस्यो परदेस,
जाय बस्यो परदेस साँवरा,
जाय बस्यो परदेस।।
– गायक –
श्री सम्पत दाधीच
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