म्हारा कानुड़ा गिरधारी,
दोहा – कर्मा बेटी जाट की,
थी भोली नादान,
भगता की पत राख ली,
मीरा के घनश्याम।
म्हारा कानुड़ा गिरधारी,
खीचड़ खा ले रे बनवारी,
कर्मा विनती कर कर हारी,
बेटी जाटा री बेटी जाटा री।।
बापू दूजे गांव सिधायो,
थारो मंदिरियो सम्भलायो,
सारो पूजा ढंग सिखायो,
म्हारा कानुड़ा,
बेगि तड़के तू उठ जइयो,
म्हारे गिरधर ने नहवइयो,
पूजा करके भोग लगइयो,
म्हारा कानुड़ा म्हारा कानुड़ा।।
मीठे पानी से नहलायो,
ऊँचे आसन पर बैठायो,
लम्बो केसर तिलक लगायो,
बेटी जाटा री,
चढ़कर मंदिरिये में काई,
कर्मा गीत गावति चाली,
ल्याई खिचड़लो भर थाली,
बेटी जाटा री बेटी जाटा री।।
सवेरे छाछ राबड़ी ल्याऊँ,
मीठी गुड़ री खीर बनाऊँ,
उठकर भोरा भोर जिमाउं,
म्हारा गिरधारी,
म्हारी भूल बता द्यो सारी,
क्यूँ थे रूठा रे बनवारी,
म्हाने गाल्यां पडसी खारी,
म्हारा गिरधारी रे म्हारा गिरधारी।।
बापू बाहर गांव सु आवे,
म्हाने मुक्का सु धमकावे,
बेटी जाटा री,
आगे गर्दन काट चढ़ाऊँ,
या मैं जहर खाय मर जाऊं,
तो भी थाने आज जिमाऊँ,
बेटी जाटा री बेटी जाटा री।।
पड़दो धावलियो रो कीनो,
मोहन खिचड़लो खा लिनो,
कर्मा श्याम का दर्शन कीनो,
बेटी जाटा री,
बोल्या श्याम मीठी वाणी,
म्हाने प्या दे ठंडो पानी,
कर्मा थारी प्रीत पिचाणी,
बेटी जाटा री बेटी जाटा री।।
जद दूजे गांव सु चौधरी आयो,
कर्मा सारो हाल सुनायो,
सुनकर घणो अचम्बो आयो,
जय हो गिरधारी,
थारो दास ‘भंवर’ हर्षावे,
‘लख्खा’ थारा ही गुण गावे,
म्हारी नैया पार लगावे,
म्हारा गिरधारी म्हारा गिरधारी।।
म्हारा कानुड़ा गिरधारी,
खीचड़ खा ले रे बनवारी,
कर्मा विनती कर कर हारी,
बेटी जाटा री बेटी जाटा री।।
स्वर – लखबीर सिंह लख्खा जी।
प्रेषक – राकेश शर्मा।
9785918001