म्हारा सतगुरु कही म्हाने बातड़िया,
म्हारा ज्ञानगुरु कही म्हाने बातड़िया,
बातड़िया जी बातड़िया।।
मिनखा जनम पदार्थ पायो,
सोय न सारी रातड़िया,
छिन में छूट जावेलो तन तेरो,
फेर न आवे हाथड़िया,
बातड़िया जी बातड़िया।।
जब लक हंस बसे काया मे,
हिलमिल होय सब साथड़िया,
मनवो फिरे मृग ज्यू भूल्यो,
काल गिणे थारी सांसड़िया,
बातड़िया जी बातड़िया।।
मात पिता सुत भाई बंधु,
और कुटुम्बों जातड़िया,
अंत काल में कोई नहीं तेरो,
जमड़ा मारेला थने लातड़िया,
बातड़िया जी बातड़िया।।
शेष महेश और संत सनकादिक,
वेद पुराणों में गातड़िया,
जन रे जिया भज रामस्नेही,
कर सतगुरु जी सु साथड़िया,
बातड़िया जी बातड़िया।।
म्हारा सतगुरु कही म्हाने बातड़िया,
म्हारा ज्ञानगुरु कही म्हाने बातड़िया,
बातड़िया जी बातड़िया।।
स्वर – संत श्री रामप्रसाद जी महाराज।
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