म्हारे एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है,
समरत है रे गुरु अमरत है,
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
नहीं जाणु मैं तो जनम मरण को,
नहीं जाणु मैं तो स्वर्ग नरक को,
म्हारे नहीं चौरासी को भान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
नहीं जाणु मैं तो वेद पुराणन,
नहीं बाची मैंने गीता रामायण,
म्हारे नहीं शाश्त्र को ज्ञान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
नहीं जाणु मैं तो नेम धरम को,
कर सकी मैं तो तीरथ बरत को,
म्हारे नहीं खर्चन को दान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
लोग कहे के तू क्यों इतरावे,
कई तो पायो जो तू फूल्यो नी समावे,
वा को कई तो करूँ रे बखान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
नहीं भावे म्हने कोई आडम्बर,
नहीं जाणु मैं तो जादू ने मंतर,
म्हारे एक ही मंत्र महान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
रोके से भी नहीं रुक पावे,
घणी तो छुपाऊं पर छुप नहीं पावे,
म्हारा बस में नहीं या जिबान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
नहीं म्हारे खेती ने नहीं म्हारे पाती,
नहीं म्हारे संगी ने नहीं म्हारे साथी,
म्हारे जनम मरण को साथ,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
जहर प्याला ज्याने अमृत बनाया,
साँप टिपारा ज्याने अनत बनाया,
कई जाणे यो सकल जहान,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
कोई यूँ कहे के तने नाग डसेगा,
कोई यूँ कहे के तने जहर चढ़ेगा,
म्हारे शरद पूनम को चाँद,
की गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
कोई यूँ बतावे बेमौत मरेगा,
कोई यूँ डरावे थने जम पकड़ेगा,
म्हारो कई तो करेगा जमराज,
जब गुरु म्हारो समरत है।
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
म्हारे एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है,
समरत है रे गुरु अमरत है,
म्हारो एक बड़ो यो अरमान,
की गुरु म्हारो समरत है।।
स्वर – संत श्री कमल किशोर जी नागर।