मारी गत मिलती,
देह के दाग लगायो,
सुन सावत सुरा,
हाथ थारे कई आयो।।
थारी बचगी सुन्दर जान,
करे मत चाला,
गुण करता अवगुण,
मान वासक काला।।
थारे रास्ते चलते,
या कई मन में आई,
मारी होती मॉस,
आके जून भुगताई।।
म्हारी लगी बदन में आग,
तो सही नही जाए,
थे करयो कितनो बडो अन्याय,
समझ में ना आई।।
तुझे जलता देख अग्नि में,
दया मन में आई,
भाला की आनी मू,
लेके जान बचाई।।
मारी पेट गस्ती,
जुन में दुखडा पायो,
मारे मनडा में आवे रिस,
सयो नी जावे।।
थारी चोटी पे चढ़ ने,
बटको भरू थारे,
सुन सांवत सुरा,
मनडा में रिस गणी आवे।।
मारी गत मिलती,
देह के दाग लगायो,
सुन सावत सुरा,
हाथ थारे कई आयो।।
गायक – रतन जी शर्मा।
महाकाल लाइव प्रस्तुति।
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