म्हारो नाथ अमली रे,
म्हारो शंकर अमली।।
दोहा – भष्मी लगावत शंकर,
लोचन बीच पड़ी जुर के,
ताकी फुफकार शशि को लागी,
अमृत बून्द पड़ी धर पे।
खाय तुषार बनराय उठ्यो,
गणराय गयो भाग जंगल में,
सुरभि सुत देखत भाग चली,
तो गवर हँसी मुख यू करके।
भंग नीली भंग पीली,
भंग पीने में यह नफा,
अंखिया होवे लाल,
दिल बिल्कुल शफा।
जो नहीं पीए भांग का घूट,
बने मारवाड़ का ऊँठ,
रह जावे ठूंठ का ठूंठ,
जो नहीं पिये भंग का घूट।
म्हारो नाथ अमली रे,
म्हारो शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
काई बोवो काशीजी म्हे,
काई ओ प्रयाग,
कांई बोवो हर की पेड़ी,
कांई ओ कैलाश,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
काशीजी में केसर बोवो,
चन्दन प्रयाग,
गांजो बोवो हर की पेड़ी,
धतूरों कैलाश,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
कांई मांगे नांदियो रे,
कांई रे गणेश,
कांई मांगे भोलो शम्भू,
जोगियों रो वेश,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
रिजको मांगे नांदियो रे,
लाडूड़ा गणेश,
भांग मांगे भोलो शम्भू,
जोगियों रो वेश,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
कोई चढ़ावे गंगासागर,
कोई काचो दूध,
कोई चढ़ावे बेल पत्र,
कोई ओ भभूत,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
भांग घोटे नांदियो रे,
छाणे रे गणेश,
भर भर प्याला देवे गवरजा,
पिये रे महेश,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
गावे सीखे सुणे साम्भले,
बैकुंठा में वास,
सांचे मन सू शिव ने ध्यावे,
पूरे मन री आस,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
तीन लोक अर चौदह भवन में,
अनघड़ महादेव,
भगत मंडल री विनती ओ,
दया रखो महेश,
म्हारा नाथ अमली रे,
म्हारा शंकर अमली,
बागों मायली भाँगड़ली,
घोटाय राखूली।।
गायक – श्याम वैष्णव जी।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052