मिथिला का कण कण खिला,
जमाई राजा राम मिला।।
जनक सुति संग रहियो ऐसे,
कनक कली पर भंवरा जैसे,
कनक कली पर भंवरा जैसे,
राम चंदा चकोरी सिया,
जमाई राजा राम मिला।।
कनक अटारी जनक दुलारी,
निरख रहे तोहे धनुधारी,
निरख रहे तोहे धनुधारी,
लेके पलकों में तुमको छिपा,
जमाई राजा राम मिला।।
पति पत्नी वृत धर्म निभाना,
दोनों कुलों का मान बढ़ाना,
दोनों कुलों का मान बढ़ाना,
अब दुनिया का होगा भला,
जमाई राजा राम मिला।।
मिथिला का कण कण खिला,
जमाई राजा राम मिला।।
स्वर – मैथिली ठाकुर।
प्रेषक – रामकृष्ण शर्मा।
8717807335