मोर मुकुट सिर कानन कुण्डल,
नैन रसीले मुख शशि मंडल,
हरि सम और न कोई रे,
सखी मेरो प्रीतम सोई रे,
मधुर मुरलियां अधरन राजे,
गल बैजन्ती माला साजे,
हरि सम और न कोई रे,
सखी मेरो प्रीतम सोई रे।।
श्रीपति हरि श्रीवर्धन,
श्रीयुत श्रीनारायण,
प्रभु के श्रीचरणनन में,
मौ श्री हीन को वंदन,
कौस्तुभमणी श्रीवक्ष की रेखा,
ऐसा श्रीधन और न देखा,
श्री सर्वांग सजोई रे,
सखी मेरो प्रीतम सोई रे।।
नील कलेवर पट पीताम्बर अंग धरे,
कान्हा कुंजन केलि करे,
पद से गंग प्रवाहित,
अंतर स्थापित राधा,
मार्ग में अनगिन सखियां,
मिलन में केवल बाधा,
नथ शिखवरलन कहत न आवै,
कोटिक मनमत देख लजावै,
देखत सुध-बुध खोई रे,
सखी मेरो प्रीतम सोई रे।।
मोर मुकुट सिर कानन कुण्डल,
नैन रसीले मुख शशि मंडल,
हरि सम और न कोई रे,
सखी मेरो प्रीतम सोई रे,
मधुर मुरलियां अधरन राजे,
गल बैजन्ती माला साजे,
हरि सम और न कोई रे,
सखी मेरो प्रीतम सोई रे।।
स्वर – साधना सरगम।
प्रेषक – पं• विनोद पांडे।
7878489588