मुझे भोले द्वार पे,
बुला लीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये,
मेरी तक़दीर को,
जगा दीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
तर्ज़ – इश्क़ और प्यार का।
तुम्हे भूल जाता हूँ,
यही मेरी भूल है,
जो चाहे सजा दो,
मुझे तो कुबूल है,
पड़ा हूँ शरण में,
उठा लीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
तेरे दर पे आ गया हूँ,
सारी दुनिया छोड़ के,
विनय कर रहा हूँ,
दोई हाथ जोड़ के,
बस एक बार दर्शन,
दिखा दीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
अर्धअंग साथ में है,
गौरा महा रानिये,
तीनो लोक जानते है,
तुम हो बड़े दानिये,
दया को खजाना,
लुटा दीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
शंकर की गर्दन में,
नागों के हार है,
चन्द्रमा है शीश पर,
नंदी पे सवार है,
जरा मस्त डमरू,
बजा दीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
कभी भोले भांग के,
नशे में है झूमते,
कभी पीके गांजा,
मरघट में घूमते,
‘पदम्’ शिव को मन मे,
बिठा लीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
मुझे भोले द्वार पे,
बुला लीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये,
मेरी तक़दीर को,
जगा दीजिये,
थोड़ा गुनाहगार पे,
दया कीजिये।।
लेखक / प्रेषक – डालचन्द कुशवाह “पदम्”
9827624524
इसी तर्ज अन्य भजन – नाथ मुझ अनाथ पर दया कीजिये।