ना यूँ घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
जो छोडूंगा तो कुछ मैं भी,
तमाशा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम।।
अगर था छोड़ना मुझको,
तो फिर क्यूं हाथ पकड़ा था,
जो अब छोड़ा तो मैं जाने,
ना क्या क्या करके छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम।।
मेरी रुस्वाइयाँ देखो,
मजे से शौक से देखो,
तुम्हें भी मैं सरे बाजार,
रुसवा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम।।
तुम्हें है नाज ये बेदर्द,
रहता है तुम्हारा दिल,
मैं उस बेदर्द दिल में दर्द,
पैदा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम।।
निकाला तुमने अपने दिल के,
जिस घर से उसी घर पर,
अगर द्रग ‘बिन्दु’ जिंदा है तो,
कब्जा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम।।
ना यूँ घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
जो छोडूंगा तो कुछ मैं भी,
तमाशा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम तुमको दुःख से,
घबरा कर के छोडूंगा,
ना यूं घनश्याम।।
स्वर – श्री राजेश्वरानंद जी महाराज।