नाम हरि का जप ले बन्दे,
फिर पीछे पछतायेगा।।
तू कहता है मेरी काया,
काया का गुमान क्या,
चाँद सा सुंदर ये तन तेरा,
मिट्टी में मिल जायेगा,
फिर पीछे पछतायेगा,
नाम हरि का जपले बन्दें,
फिर पीछे पछतायेगा।।
वहाँ से क्या तू लाया बन्दे,
यहाँ से क्या तू ले जायेगा,
मुट्ठी बाँध के आया जग में,
हाथ पसारे जायेगा,
फिर पीछे पछतायेगा,
नाम हरि का जपले बन्दें,
फिर पीछे पछतायेगा।।
बालापन में खेला खाया,
आई जवानी मस्त रहा,
बूढ़ापन में रोग सताये,
खाट पड़ा पछ्तायेगा,
फिर पीछे पछतायेगा,
नाम हरि का जपले बन्दें,
फिर पीछे पछतायेगा।।
जपना है तो जपले बन्दें,
आखिर तो मिट जायेगा,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
करनी का फल पायेगा,
फिर पीछे पछतायेगा,
नाम हरि का जपले बन्दें,
फिर पीछे पछतायेगा।।
नाम हरि का जप ले बन्दे,
फिर पीछे पछतायेगा।।
स्वर – अनूप जलोटा जी।