नाच्यो बहुत गोपाल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल,
काम क्रोध को पहिर चोलना,
कंठ विषय की माल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल।।
तृष्णा नाद करत घट भीतर,
नाना विधि दे ताल,
भामर होय मन भयो पखावज,
ऊपर हंस गति चाल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल।।
माया कटि को फेंटा बांध्यो,
लोभ तिलक दियो भाल,
महा मोह के नूपुर पहेरे,
निंदा शब्द रसाल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल।।
कोटि कला कछुक दिखलाई,
जल थल शुद्ध भेजाल,
‘सूरदास’ की सबही अविद्या,
दूर करो नंदलाल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल।।
नाच्यो बहुत गोपाल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल,
काम क्रोध को पहिर चोलना,
कंठ विषय की माल,
अब मैं नाच्यों बहुत गोपाल।।
स्वर – तिलक गोस्वामी।
प्रेषक – ऋषि कुमार विजयवर्गीय।
7000073009