नन्द जी रा लाला,
म्हारे घरा आवो नी,
म्हारो हिवडो हरखैला,
थांरा दरस दिखावो नीं।।
म्हे थांरा लाड लडास्यां,
थांनै पालणियै झुलास्यां,
थां सागै रास रचास्यां,
थांनै मीठा गीत सुणास्यां।
थे मुरळी जरा बजाद्यो,
म्हे सागै ढोळ बजास्यां,
थे घूंघरिया घमकाद्यो,
थांनै पळ्कां पै बिठास्यां।
म्हारा कंवर कन्हैया,
मत बिलमावो जी,
म्हारा तरसै दोन्यूं नैण,
थांरी छबि दिखलावो जी।
नंद जी रा लाला,
म्हारै घरां आवो नीं।।
सबरी रो अैंठ्यो खायो,
के आणन्द थांनै आयो,
थे गया बिदुर रै द्वार,
थांनै कोरो साग खुवायो।
मीरां तो पीग्यी दूध,
थांरै जै’र पांती आयो,
करमां री बासी राब,
सूखी रोट्यां मं के पायो।
नटखट सांवरिया,
सैं नै छिटकावो जी,
थे आवो म्हारै बीच,
म्हारा हरख बढावो जी।
नंद जी रा लाला,
म्हारै घरां आवो नीं।।
थे म्हारै आंगण आवो,
जी भरकै माखण खावो,
डोवै री राब खुवास्यूं,
कानां मत मन मं सरमावो।
सारी सखियां नै ले आवो,
थांरै ग्वाळां नै ले आवो,
म्हे रबडी खीर बणाई,
कानां धाप-धाप कै खावो।
“गोपाळ” कन्हैया,
क्यांटै घबरावो जी,
थांरी करस्यां म्हे मनवार,
म्हारै घरां पधारो जी।
नंद जी रा लाला,
म्हारै घरां आवो नीं।।
नन्द जी रा लाला,
म्हारे घरा आवो नी,
म्हारो हिवडो हरखैला,
थांरा दरस दिखावो नीं।।
स्वर – रमा बाई चाण्डक।
प्रेषक – विवेक अग्रवाल।
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