निगाहें करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए,
दर दर फिरूं मैं भटकती यहाँ,
प्रभु अब तो मेरी खबर लीजिए,
निगाहे करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए।।
बिगड़ा नसीबा बनाते तुम्ही हो,
बिछड़े हुओं को मिलाते तुम्ही हो,
मुझपे चढ़ाकर रंग अपना,
सुदामा के जैसी मेहर कीजिए,
निगाहे करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए।।
ना मांगू मैं ख़ुशी मैं दोनों जहां की,
जरुरत मुझे बस तुम्हारी दया की,
मुझे अपने दर की जोगन बना,
ना दर से मुझे दर ब दर कीजिए,
निगाहे करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए।।
ये माना है मैं तेरे काबिल नहीं हूँ,
तेरे भक्तजन में मैं शामिल नहीं हूँ,
‘चन्दन’ अपनी दासी बना,
‘अनाड़ी’ के जैसी कदर कीजिए,
निगाहे करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए।।
निगाहें करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए,
दर दर फिरूं मैं भटकती यहाँ,
प्रभु अब तो मेरी खबर लीजिए,
निगाहे करम की नज़र कीजिए,
गमे जिंदगी की सहर कीजिए।।
स्वर – चन्दन शर्मा।