निर्मोही राजा की कथा,
एक दिन भूपति,
खेलन गय़ा शिकार,
प्यास लगी उस भूप को,
गया गुरु के पास।
कहा आए कहा जात हो,
दिसत हो अध भूप,
कौन नगर मे रेहत हो,
किण राजा रा पूत।
राजा है के निर्मोही,
वो अटल करत है राज,
उनका कहीजु बालका,
ऋषि पूछो निश्चय आज।
कवरा आवो यहां बैठो,
हम नगर को जात,
जो राजा निर्मोही है वा री,
पल मे खबरो लात।।
तुम सुन चेरी श्याम की,
बात सुनाऊँ तोय,
कंवर वीनाश्यो सिह ने,
आसन पडियो मोय।
नही कोई चेरी श्याम की,
नही कोई मेरो श्याम,
परालब्ध का मेला है,
सुनो ऋषि अभय राम।।
तुम सुन सूत री सुंदरी,
अबला जोबन माय,
देवी वाहन आन भख्यौ,
तेरो श्री भगवान।
तपस्या पूर्व जन्म की,
मै क्या जानू वियोग,
विधाता ने लिख दिया,
वो ही लिखन के जोग।।
रानी तुमसे विपत अति,
सूत खायौ मृगराज,
हमने भोजन नही किया,
तेरे मरण काज।
दरख्त एक डाला,
घणा पंछी बेठा आए,
रजनी गई पीली भई,
चहुँ दिस उड़ उड़ जाय।।
राजा मुख से राम कहो,
पल पल जात घड़ी,
कंवर विनाशयो सिंह ने,
आसन लाश पड़ी।
तपसी पत कयो छोडियो,
अठे हर्ख नही है शोक,
घड़ी पलक का मेला है,
जग मुसाफीर लोग।।
धिन राजा धिन बादशाह,
धिन है सारो देश,
धिन है थारा सतगुरु ने,
साचा दिया उपदेश।
प्रेषक – अनिल जाखड़ नाँद।
गायक – सुरेश जांगिड़ बाड़मेर।
मो. 9664017839