निवण करू गुरु जम्भ ने,
निरु निरमल भाव,
कर जोड़े बंधू चरण,
शीश निवाया निवाय।।
निवण खिवण,
सब सुं आदर भाव,
कह केशो सोई बड़ा,
जां में घण छिभाव।।
आम फले नीचो निवे,
एरड ऊँचो जाय,
नुगर सुगर की पारखा,
कह केसो समझाय।।
आवो मिलो,
सिवंरो सिरजन हार,
सतगुरु सत पंथ चालियो,
खरतर खाडाँ धार।।
जम्भेश्वर ज़िभिया जपौ,
भीतर छोड़ विकार,
संपती सिरजण हार की,
विधि सुं सुण विचार।।
अवसरि ढील न कीजिए,
भलेन लाभै वार,
जंभ राजा वांसै वहै,
तलबी कियो तियार।।
चहरी वस्तु न चाखिये,
उर पर तजि अहंकार,
बाडे हूंता विछड्या जारी,
सतगुरु करसी सार।।
सेरी सिवंरण प्राणीयां,
अंतर बड़ो आधार,
परनिंदा पापा सिरे,
भूली उठाये भार।।
परलै होयसी पाप सुं,
मुरख सहसी मार,
पाछे ही पछतावछी,
पापा तणि पहार।।
ओगण गारो आदमी,
इलारै उर भार,
कह ‘केशो’ करणि करो,
पावो मोक्ष द्वार।।
निवण करू गुरु जम्भ ने,
निरु निरमल भाव,
कर जोड़े बंधु चरण,
शीश निवाया निवाय।।
गायक – राजू जी महाराज।
प्रेषक – विष्णु मारवाड़ी।
9636010641