ओ झुँझन वाली माँ,
क्या खेल रचाया है,
तू प्यार का सागर है,
तू मन का किनारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
तर्ज – होंठो से छु लो तुम।
देखि है तेरी दुनिया,
क्या रचना रचाई है,
दिन रात के चक्कर में,
कुछ समझ ना आई है,
हर पल जो बीत रहा,
माँ तेरा ईशारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
महलों में भी दुःख देखे,
और सड़को पे खुशहाली,
कोई राजा है किस्मत का,
कोई किस्मत से खाली,
सब तेरी लीला है,
सब तेरा फ़साना है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
कोई फूलों पे सो ना सके,
कोई कांटो में हँसता है,
कही मौत हुई सस्ती,
कही जीवन महंगा है,
कोई खुशियों में डूबा है,
कोई गम का मारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
कोई जन्म से पहले मरे,
कोई मर के भी जीता है,
कोई घाव लगाता है,
कोई जख्मों को सीता है,
ये कैसी हकीकत है,
ये कैसा नजारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
कोई दुःख को सुख समझे,
कोई सुख में भी रोता है,
आशा और तृष्णा का,
कभी अंत ना होता है,
इस भूल भुलैया में,
पड़ा दास बेचारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
ओ झुँझन वाली माँ,
क्या खेल रचाया है,
तू प्यार का सागर है,
तू मन का किनारा है,
ओ झुँझण वाली माँ,
क्या खेल रचाया है।।
Singer – Saurabh Madhukar