पाखंड में नर क्यों भटका खावे रे,
दोहा – उपकार बडो निज धर्म कहे,
तन से मन से धन से कर रे,
धन संग चले परमार्थ तो,
नित खूब कमा वित जो भर रे।
कर सोच रे धनवान कहां,
तज भूप गए धरणी धर रे,
चल भारती पूरण आज यहां,
कल होय कहां अपनो घर रे।
समझ सुख पावे रे,
पाखंड में नर क्यों भटका खावे रे,
समझ सुख पावे रे।।
नीति बिना नहीं सुख सपने में,
संत ग्रंथ शब्द गावे रे,
नीति तो नारायण साथी,
सब दुख जावे रे,
समझ सुख पावे रे,
पाखंड में नर क्यो भटका खावे रे,
समझ सुख पावे रे।।
कर्म हीन ज्योतिष को जाके,
भविष्य योग दिखावे रे,
भाग भरोसे रहे आलस्य में,
सब दुख आवे रे,
समझ सुख पावे रे,
पाखंड में नर क्यो भटका खावे रे,
समझ सुख पावे रे।।
करणी में विश्वास नहीं जड़,
पूजा कर सुख छावे रे,
रहे सत्संग से दूर मूर्ख,
पाखंड को ध्यावे रे,
समझ सुख पावे रे,
पाखंड में नर क्यो भटका खावे रे,
समझ सुख पावे रे।।
चेतन भारती सतगुरु सुख को,
पंथ संत समझावे रे,
कर पुरुषार्थ भारती पुरण,
यू मस्त रहावे रे,
समझ सुख पावे रे,
पाखंड में नर क्यो भटका खावे रे,
समझ सुख पावे रे।।
समझ सुख पावे रे,
पाखंड में नर क्यो भटका खावे रे,
समझ सुख पावे रे।।
गायक – पुरण भारती जी महाराज।
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