पल पल में याद आवे रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली,
कान्हुड़ा री बातड़ली,
रे सांवरिया री बातड़ली,
पल पल मे याद आवें रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली।।
एक दिन मैं वृन्दावन जाती,
संग में साथड़ली,
साथड़ली तों छूट गई रे,
पड़ गयी रातड़ली,
पल पल मे याद आवें रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली।।
एक दिन सुती रंग महल में,
सपनों आयो रातड़ली,
आन अचानक दर्शन दीना,
खुल गयी आंखड़ली,
पल पल मे याद आवें रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली।।
जमुना किनारे धेनु चरावें,
हाथ में लाकड़ली,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
बज बांसलड़ी,
पल पल मे याद आवें रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली।।
पल पल में याद आवे रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली,
कान्हुड़ा री बातड़ली,
रे सांवरिया री बातड़ली,
पल पल मे याद आवें रे,
कान्हुड़ा री बातड़ली।।
स्वर – श्री राधाकृष्ण जी महाराज।
प्रेषक – केशव।